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रविवार, 28 अक्तूबर 2012

जहां तुमने मुझे गर्म सांसों का से मिलाया था.

तुम तो तस्वीर की सी हो
जो लटकी है मेरे दिल की दीवारों पे
मैं अक्सर 
तन्हा होता हूं 
उसी से बात करता हूं..
तुम्ही को याद करता हूं..!!
वो लम्हे जो तुमने मुझको सौंपे थे 
अपने आप आगे आ 
उन्ही लम्हों में लिपटा था तुम्हारे रूप का ज़ादू
जिसे मैं प्यार का आकार देता हूं
दिल की दीवार वाली तुम्हारी तस्वीर को अक्सर 
बीसीयों बार उन तन्हा पलों मे 
निहार लेता हूं..
ख़ुदा जाने तुम क्या सोचती होगी 
कहां होगी..?
जहां हो यक़ीनन तुम कभी तो सोचती होगी 
 मिला था
एक दीवाना
ठिठुरता जाड़े में
 इक बेबस किनारे पर 
जहां तुमने मुझे 
गर्म सांसों का
से मिलाया था..!
 न जाने किस जगह कैसा कहां 
होगा वो दीवाना 
सुनाना मत किसी को 
सुलगते पलों के किस्से 
हमारी प्रीत की पाक़ीज़गी को
कौन जानेगा..




5 टिप्‍पणियां:

  1. सुनाना मत किसी को
    सुलगते पलों के किस्से
    हमारी प्रीत की पाक़ीज़गी को
    कौन जानेगा..
    सच बात है... बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. Manu Tyagi ji,संध्या शर्मा,ललित शर्मा ji,डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक,mridula pradhan Thank & regards

    जवाब देंहटाएं

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