प्रेम का सन्देश देता ब्लॉग

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रविवार, 30 अक्तूबर 2011

आह..!


तेरे आने से पहले
और
तेरे जाने के बाद
तेरे रोने से पहले
और
तेरे हंसने के बाद
तेरे ग़मों से पहले
और
तेरी खुशियों के बाद
तेरी यादें,तेरी खामोशी,
तेरे दर्द,तेरे आंसू
आकर हमें घेर लेते हैं
कभी तन्हाई का
अहसास ही नही होता.

शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

जब तुम अंगूठे और तर्जनी के बी़च रवीली रंगोली कस के उठातीं थीं



हां !! मुझे याद हैं
वो दिन
जब  तुम
अंगूठे और तर्जनी के बी़च
रवीली रंगोली कस के उठातीं थीं
फ़िर रवा-रवा रेखाओं से
बिंदु - बिंदु मिलाती थीं
आंगन सजाती थीं..!!
तब मैं भी
एक "पहुना-दीप"
तुम्हारे आंगन में
रखने के बहाने
आता था ..
याद है न तुमको
फ़िर अचकचाकर तुम पूछती-"हो गई पूजा !"
और मैं कह देता नहीं-"करने आया हूं  दीप-शिखा की अर्चना.."
अधरों पर उतर आती थी
मदालस मुस्कान
ताज़ा हो जातीं हैं वो यादें
जब रंगोलियां आंगन सजातीं हैं

शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

प्रीत गीत की वेला में


प्रेम की मदिर स्मृतियों मे तुम्हारी सुमधुर
आवाज़ में  गीत प्रेम  गीत
बार बार याद आ रहा है
और याद आ रही हो तुम इस वेला


सच प्यार के वे पल जो मैं जीता हूं
शायद ही किसी को नसीब हुए हों..!!
सच है न.. पोर-पोर प्यार भीगा मैं
अनाभिव्यक्त मदालस प्रीत की गंध
अब तक दिलो-दिमाग़ से ज़ुदा न कर पाया
सच ........ तुम कहां हो
मैं अकेला कहां आ गया
बस तन्हाई से अक्सर ये बातें करता हूं


गुरुवार, 27 अक्तूबर 2011

प्रेम पत्र के साथ गुज़ारा कब तक करूँ कहो तुम प्रियतम ?

आभार सहित : सहयात्री
प्रथम प्रीत का प्रेमपत्र ही
सिहरन धड़कन का कारन अब
नयनगंग की  इन  धारों को
लौट के देखा तुमने है कब
प्रेम पत्र के साथ गुज़ारा
कब तक करूँ कहो तुम प्रियतम
****************
हुई हुलासी थी तुम जब तुमने
प्रेमपंथ की डोर सम्हाली
कैसे लुक-छिप के मिलना है
तुमने ही थी राह निकाली
जब-तब अंगुली उठी किसी की
थी तुमने ही बात सम्हाली !
याद करो झूठी बातों पर
हम-तुम बीच हुई थी अनबन...!
प्रेम पत्र के साथ गुज़ारा
कब तक करूँ कहो तुम प्रियतम
*****************************
आज विरह का एकतारा ले
स्मृतियों के गलियारों से
तुम्हें खोजने निकल पडा हूँ 

अमराई में कचनारों  में
जब तक नहीं मिलोगे प्रिय तुम
सफ़र रहेगा अंगारों में
इस यायावर जीवन को भी
कोई तो देगा मन-संयम
प्रेम पत्र के साथ गुज़ारा
कब तक करूँ कहो तुम प्रियतम

बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

शुभ-दीवाली


 नेह दीप जो तुमने बारे दीवट-आंगन मन उजियारे
मांड रंगोली चिहुंकी बोली- रख आओ दीपक पहुनारे


शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

अतीत के उस छोर पर अपने को पाता हूं ख़ुद को


हां बरसों बाद
तुमसे मिलकर
अतीत के उस छोर पर
पाता हूं ख़ुद को
जहां
जकड़ गई थी जुबां
"पता नही क्या कहोगी
क्या सोचोगी
हां या न
कह न सका
मुझे तुमसे प्यार है..!!"-
 कह न सका था
शायद वही जो तुम सुनना चाहतीं थीं
है..न...?
अरे हां याद आया
एक बार तुमने पूछा तो था..
मेरे कल के बारे में
आकाश को देखता
तुम्हारे सवाल पर अपने उत्तर का
 सुनहरा-सपनीला रोगन न छिड़क सका
पर जवाब न देने का दर्द भोगता मैं
आज़ तुमको खुश देख खुश हूं..
फ़िर भी अतीत के उस छोर तक
निगाहों को जाने से कैसे रोकूं
तुम्ही कहो न 

रविवार, 16 अक्तूबर 2011

गीतों भरी तन्हाई और तुम


Posted by Picasa
   दिल का दिया जलते ही दिल की धड़कने रंग लाने लगीं और तुम्हारी यादें उस एकाक़ी पल में तुम्हारे क़रीब और क़रीब ले आतीं हैं. मुझे याद हैं वो पल जब अचानक़ किसी काम के लिये तुम्हारे घर जाया करता था तुम शर्मीले अंदाज़ से कनखियों से मुझे निहांरतीं फ़िर खुद को सम्हाल के कहतीं हड़बड़ाहट के साथ - जी, भैया नहीं है आईये न आईये न.. शायद तब तुम्हारी तेज़ धडकनें आवाज़ में जो क़शिश होती उसी को याद करता हूं अक्सर तन्हाई में तुम्हारी तस्वीर देखता हूं पर जो बात तुझमें है वो तेरी तस्वीर में कहां..? are
और उस शाम जब देर तक हम तुम बातों ही बातों में दूर तलक निकल आए थे सपनीली-फ़ुलवारी में तब ही तो छिड़ी थी फ़ूलों की बात   ये  क्या  अब  तो पुकार लो ....सच अब वीराने में ""दिल तडप के क्या सदा दे रहा" है 
नोट :  इस पोस्ट में चुनिंदा लिंक हैं जो उस दिन जब अकेले में सफ़र के दौरान खाली वक़्त में सुन रहा था .आप भी सुनिये 

बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

जब जब हम तुम मौन रहे हैं तब सच्चा संवाद हुआ !!

अंजोरी सी प्रीत-रश्मियां कब बिखरी मन की चादर पर
कैसे और कहां से लाईं भाव-अमिय, तुम भी गागर -भर  
कैसे जागी आस मिलन की कब तुम पर विश्वास हुआ ?जब जब दूरी तुमसे चाही मन तब तब कुछ पास हुआ
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कल जब शशि था पूर्ण कलामय मन एकाकी होता कैसे?
तुम बिन मैं क्या कुछ रच पाता भाव शब्द में बोता कैसे ?
कण कण व्यापी चंद्र-रश्मियां हमने भी कुछ याद किया
एक बार फ़िर प्रियतम का नज़दीकी एहसास हुआ..!!
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तुम अनुपम कृति तन से मन से मैं चातक सा दीवाना
तुम्हैं प्रीत मुझसे हो न हो मैं इस बात से अनजाना !!
व्यक्त करो या मन में रक्खो पर ये सच अब स्वीकार ही लो
जब जब हम तुम मौन रहे हैं तब सच्चा संवाद हुआ !!
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शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

न मिल मिल पाए तो मत रोना ये नेह रहेगा फ़िर उधार..!

 
  रिस रिस के छाजल रीत गई  तुम बात करो मैं गीत लिखूं
by Girish Mukul
रिस रिस के छाजल रीत गई
तुम बात करो मैं गीत लिखूं
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कुछ अपनी कहो कुछ मेरी सुनो
कुछ ताने बाने अब तो बुनो
जो बीत गया वो सपना था-
जो आज़ सहज वो अपना है
तुम अलख निरंजित हो मुझमें
मन चाहे मैं तुम को भी दिखूं
तुम बात करो मैं गीत लिखूं
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तुम गहराई सागर सी
भर दो प्रिय मेरी गागर भी
रिस रिस के छाजल रीत गई
संग साथ चलो दो जीत नई
इसके आगे कुछ कह न सकूं
तुम बात करो मैं गीत लिखूं
*************************
तुमको को होगा इंतज़ार
मन भीगे आऎ कब फ़ुहार..?
न मिल मिल पाए तो मत रोना
ये नेह रहेगा फ़िर उधार..!
मैं नेह मंत्र की माल जपूं
तुम बात करो मैं गीत लिखूं

गुजरात का गरबा वैश्विक हो गया

  जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर गुजरात   के व्यापारियो...