सोमवार, 28 फ़रवरी 2011
शनिवार, 26 फ़रवरी 2011
तुम्हारी पहचान
समझी थी तुमको मैं
अपनी ही तरह
सीधा सादा ,
तुम जो ज्ञान और अनुभव
समंदर
और मैं उसी सागर से बने
बादलों से टपकती
एक नन्ही सी बूंद !!
कितनी आसानी से
तुमने समझा दिया
अपना व्यक्तित्व
अपने आप मै ,
अपनी आत्मा में
तुम्हे बिना तुम्हारी
विशालता जाने ही
आज -
रूप ,रंग ,अस्तित्व
तुम्हारा व्यक्तित्व ...!
सोचती हूँ
कैसे करूँ
अपने आप का सामना ?
ये अनजाने में ही
क्या मुझको मिल गया ?
बहुत छोटी हूँ
तुम्हारे इस अतः हीन ज्ञान के आगे मैं
नहीं समझ पा रही क्या करूँ ,
क्या कहूँ अपने आप से ?
अपनी ही तरह
सीधा सादा ,
तुम जो ज्ञान और अनुभव
समंदर
और मैं उसी सागर से बने
बादलों से टपकती
एक नन्ही सी बूंद !!
कितनी आसानी से
तुमने समझा दिया
अपना व्यक्तित्व
अपने आप मै ,
अपनी आत्मा में
तुम्हे बिना तुम्हारी
विशालता जाने ही
अपने आप मै बसा लिया था मैंने
और जाना है अचानकआज -
रूप ,रंग ,अस्तित्व
तुम्हारा व्यक्तित्व ...!
सोचती हूँ
कैसे करूँ
अपने आप का सामना ?
ये अनजाने में ही
क्या मुझको मिल गया ?
बहुत छोटी हूँ
तुम्हारे इस अतः हीन ज्ञान के आगे मैं
नहीं समझ पा रही क्या करूँ ,
क्या कहूँ अपने आप से ?
शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011
हां ! उस रात सितारों से तुम्हारा ज़िक्र हुआ
हां ! उस रात
देर तक सितारों से
तुम्हारा ज़िक्र हुआ !
तुम्हारा न होना
सितारों पर भारी था
विरह में कुछ सितारे
सिसकने लगे
कुछ जो बेहद व्यग्र थे
इधर-उधर खिसकने लगे
तभी
ज्यों ही
पूरब से
सूरज ने झांका
अदृश्य हुए बेचारे
सितारे
तुम
अपनी अंजोरीयां
मत ले जाया करो
साथ समेट के !
हां चांद सच है !
इन सितारों को
इन बेचारों को
तुम्हारे बिना
भाते नहीं कोई भी पाठ
आकाशी सलेट पे !!
इस पोस्ट पर प्रयुक्त चित्रों के लिये अगर चित्र के सृजक/स्वामी को कोई आपत्ती हो तो मुझे सूचित कीजिये.
मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011
न मुझको खोजो जला मशालें कि एक दीपक ही काम का है.
न मुझको खोजो जला मशालें कि एक दीपक ही काम का है.
उसे जगाओ कि न जगाओ, पुकारो मुझको कि पास हूं मैं.......!
ये टूटी सड़कें ये गर्म ज़ेहन,हरेक शहर का है हाल इक ही.
ये गांव बस्ती, ये ऊंचे टीले, सभी को लेकर उदास हूं मैं.
उसे जगाओ कि न जगाओ, पुकारो मुझको कि पास हूं मैं.......!
ये टूटी सड़कें ये गर्म ज़ेहन,हरेक शहर का है हाल इक ही.
ये गांव बस्ती, ये ऊंचे टीले, सभी को लेकर उदास हूं मैं.
शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011
सुनो प्रिया मैं गाँव गया था
तुमको सोने का हार दिला दूँ
सुनो प्रिया मैं गाँव गया था
भईयाजी के साथ गया था
बनके मैं सौगात गया था
घर को हम दौनों ने मिलकर
दो भागों मैं बाँट लिया था
अपना हिस्सा छाँट लिया था
पटवारी को गाँव बुलाकर
सौ-सौ हथकंडे आजमाकर
खेत बराबर बांटे हमने
पुस्तैनी पीतल के बरतन
आपस मैं ही छांटे हमने
फ़िर खवास से ख़बर रखाइ
होगी खेत घर सबकी बिकवाई
अगले दिन सब बेच बांच के
हम लौटे इतिहास ताप के
हाथों में नोट हमारे
सपन भरे से नयन तुम्हारे
प्लाट कार सब आ जाएगी
मुनिया भी परिणी जाएगी
सिंटू की फीस की ख़ातिर
अब तंगी कैसे आएगी ?
अपने छोटे छोटे सपने
बाबूजी की मेहनत से पूरे
पतला खाके मोटा पहना
माँ ने कभी न पहना गहना
चलो घर में मैं खुशियाँ ला दूँ
तुमको सोने का हार दिला दूँ
बनके मैं सौगात गया था
घर को हम दौनों ने मिलकर
दो भागों मैं बाँट लिया था
अपना हिस्सा छाँट लिया था
पटवारी को गाँव बुलाकर
सौ-सौ हथकंडे आजमाकर
खेत बराबर बांटे हमने
पुस्तैनी पीतल के बरतन
आपस मैं ही छांटे हमने
फ़िर खवास से ख़बर रखाइ
होगी खेत घर सबकी बिकवाई
अगले दिन सब बेच बांच के
हम लौटे इतिहास ताप के
हाथों में नोट हमारे
सपन भरे से नयन तुम्हारे
प्लाट कार सब आ जाएगी
मुनिया भी परिणी जाएगी
सिंटू की फीस की ख़ातिर
अब तंगी कैसे आएगी ?
अपने छोटे छोटे सपने
बाबूजी की मेहनत से पूरे
पतला खाके मोटा पहना
माँ ने कभी न पहना गहना
चलो घर में मैं खुशियाँ ला दूँ
तुमको सोने का हार दिला दूँ
मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011
सलोनी भाभी को दिया हमने गुलाब,
सच बताएं आज का वैलेंटाइन हमको सूट नहीं किया. सुबह सवेरे उनने हमसे कहा उपर गमलों से कुछ फ़ूल तोड़ लाएं . राजीव तनेजा जी की तरह हमने वी आर द बेस्ट कपल बने रहने के लिये उनकी हरेक बात मानने की कसम खाई थी. सो बस बाबूजी ने छत पे जो लगाया है उस बगीचे से खूब सारे फ़ूल तोड़े सीढ़ीयों से उतर ही रहे थे कि बाजू वाली सलोनी भाभी ने देखा बोली:- अरे वाह, इतने गुलाब..किस लिये ले जा रहें हैं ?
जी, पूजा के लिये ले जा रहा हूं...?
वो हमारे भोंदूपने पे ठिलठिला के हंस दीं बोली :- भाई साब, बड़े भोले हो या हमको मूर्ख समझते हो.
हम:-"न भाभी सच पूजा के लिये ही हैं ! यक़ीन कीजिये "
सलोनी भाभी: अच्छा..? तो ठीक है एक मुझे भी दे दीजिये ..हंसते हुए बोलीं पूजा के लिये , आ रही हूं..!
हम बाहर आंगन में उनका इंतज़ार करने लगे . श्रीमति जी तक उनकी आवाज़ जा चुकी थी सो श्रीमति जी झट बाहर आईं. उनने देखा कि हम सलोनी भाभी को गुलाब दे रहें हैं. बस दहकने लगीं गुलाब सी . और फ़िर क्या दिन भर जारी जंग तब जाकर रुकी जब सलोनी भाभी ये बताने घर आई की हमारी ननद पूजा ने आपके घर का गुलाब अमय को दे दिया दुआ कीजिये दौनों की जोड़ी पक्की हो जाए आज़ वैलेंटाइन डे है न मैं भाई साब से गुलाब ले गई थी पूजा के लिये.
अब क्या मिसाल दूं इस प्रेम पर्व की
अब क्या मिसाल दूं इस प्रेम पर्व की
सोमवार, 14 फ़रवरी 2011
जाने क्यों इज़हार वो,इक बार भी न कर सकी ?
मौन थी वो प्यार का
इज़हार भी न कर सकीं -
जाने क्यों इज़हार वो,
इक बार भी न कर सकी ?
आज़ उसने घर बुलाया था मुझे
कोना-कोना अपने घर का आज मुझे.
फ़र्श पे बिखरा बहुत सामान था
घर क्या था
उसका
कबाड़ की दूकान था
कप सोफ़े पे रखा था
और टी०वी० पे गिलास
कहां बैठोगे पूछा
हो गई फिर वो उदास
कुर्सियां खिलौनों से अटी थीं
बिछायत दीवान की
भी तो फ़टी थी..!
तभी एक कमरे से घर के
एक बच्चा सा बड़ा
और लिपटा उससे बोला दीदी आओ
साथ मेरे आज़ तुम भी गीत गाओ
आज़ मेरा जनम-दिन है
केक लाओ गुब्बारे ये अंकल फ़ुला देंगे
आज़ फ़िर मेरा जनम दिन मना लेंगे
अविकसित युवा भाई एक वज़ह है
मौन है वो प्यार का
इज़हार भी न कर सकीं -
समझ पाया हूं मैं कि
क्यों इज़हार वो,
इक बार भी न कर सकी ?
और फ़िर हौले से एक फ़ूल उसको सौंप कर
आ गया हूं वापस मैं - अपने घर
कदाचित सहभागी बनाएगी वो मुझको
है यकीं कभी तो अपनाएगी मुझको
शनिवार, 12 फ़रवरी 2011
प्रेम जो देह से ऊपर प्रेम जो ह्रदय की धरोहर
प्रेम की पहली उड़ान है
तुम तक मुझे बिना पैरों
के ले आई..!
तुमने भी था स्वीकारा मेरा न्योता
वही मदालस एहसास
होता है साथ
होता है साथ
तुम जो कभी कह न सकीं
मैं जो कभी सुन न सका
उसी प्रेमिल संवाद की तलाश थी
प्रेम जो देह से ऊपर
प्रेम जो ह्रदय की धरोहर
उसे संजोना मेरी तुम्हारी जवाबदारी
नहीं हैं हम पल भर के अभिसारी
उन दो तटों सी जी साथ साथ रहतें हैं
बीच उनके जाने कितने धारे बहते हैं
अनंत तक साथ साथ
होता है मिलने का विश्वास
शनिवार, 5 फ़रवरी 2011
प्रोफ़ेसर मटुकनाथ एवम श्रीमति जूली से बातचीत
श्रीमति जूली,प्रोफ़ेसर मटुकनाथ चौधरी |
मैंने तो चैट शो लाइव कर दिया अब बारी है आपकी प्रोफ़ेसर मटुकनाथ चौधरी और उनकी जूली जी के साथ लिव इन रिलेशनशिप की पड़ताल तो आप करेंगे. मटुकनाथ अपने इस कदम को समाज और विवाह-क़ानून व्यवस्था से किया असहमत होकर किया विद्रोह बता रहे हैं जूली उनके साथ हैं, दौनों के सतर्क हो कर तर्क देते हैं, वे मीडिया के द्वारा पहले स्टोरी के रूप में जनता के सामने आये मेरी दृष्टी में अब वे उसी मीडिया के सहारे लाइम लाईट में बने रहते हैं . पर उनका (मटुक जी का) मत है कि :-'ऐसा नहीं है वे अपनी प्रसिद्धी को कैश नहीं कर रहे हैं.(चुनाव क्यों लड़ना चाहा इसका ज़वाब इसी वार्ता में घुमा फिरा के मिला )' सवाल जब ये किया गया कि :-आप के पास विवाह के पूर्व भी अवसर था विद्रोह करने का ? तक जो उनने जो कहा उससे मटुकनाथ जी का मनो-वैज्ञानिक स्वरुप सामने आया उसका मुझे पहले से ही अंदाजा था. वे स्वीकारते हैं कि प्रथम पत्नी को वे स्वीकारने तत्पर हैं -. और बहुत से खुलासे हुए इस शो में आप सुनिए और बताइये आप क्या सोचते हैं
मटुक जी का ब्लॉग::-मटुकजूली -पिंजर प्रेम प्रकासियाइस वार्ता का उद्दयेश्य भारतीय सामाजिक परिवार व्यवस्था को परखना था भारत में कई और 'मटुक और जूली' कथानक हैं और अब तो इन कथानकों में आये दिन वृद्धि हो रही है . अब ज़रुरत है गंभीर चिन्तन की,
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